कृष्ण जन्म की आध्यात्मिक व्याख्या
कृष्ण ब्रह्म या ईश्वर चेतना का प्रतिनिधित्व करते हैं। आत्म-बोध का दूसरा नाम कृष्ण हैं । आम तौर पर इच्छाएं और नकारात्मक विचार अज्ञानता के साथ हमारी चेतना को प्रभावित करती हैं। आत्म-बोध की यात्रा में इस अज्ञान को केवल योग सूत्रों द्वारा वर्णित आठ आध्यात्मिक सिद्धांतों द्वारा दूर किया जा सकता है। और ये सिद्धांत है-यम (आत्म नियंत्रण), नियमा (आत्म-अनुशासन), आसन (शारीरिक मुद्राएँ); प्राणायाम (सांस पर नियंत्रण), प्रत्याहार ( अपने अंदर झाँकना ), ध्यान (चिंतन) और समाधि (आत्म-बोध )।
कारागार अज्ञानता का प्रतीक है, जो अंधेरे का प्रतिनिधित्व करता है; संकीर्ण सोच (छोटा प्रवेश द्वार) और सब कुछ एक सीमा (छोटे कमरे) तक सीमित। जेल में बेड़ियों का मतलब वासना, लालच, इच्छाओं और अहंकार के बंधन से है। कारागृह (जेल) में कृष्ण के जन्म का अर्थ है ‘अज्ञान से बाहर आकर आत्म-साक्षात्कार’। इसे केवल अष्टांग योग के आठ सिद्धांतों के तपस (अभ्यास ) अर्थात कड़ी मेहनत के साथ उनका पालन करके प्राप्त किया जा सकता है। कृष्ण, देवकी की आठवीं संतान के रूप में पैदा हुए, योग के आठ अंगों के तप का प्रतिनिधित्व करते हैं। योग के सात चरणों को सफलतापूर्वक पार करने के बाद ही आत्मबोध को पर्याप्त किया जा सकता है और इस प्रक्रिया में मन को शुद्ध किया जाता है।
हम सब जानते हैं की जैसे ही कृष्ण का जन्म हुआ, उनके पिता को बांधने वाली जंजीरें गिर गईं; दरवाजे जो तालो से बांधे गए थे, वे खुले और जेल प्रहरी तुरंत नींद में चले गए। और पिता, वासुदेव, कृष्ण को एक टोकरी में रखकर यमुना नदी को पार कर गोकुल चले गए, जहाँ उसी समय नंद की पत्नी यशोदा ने एक पुत्री को जन्म दिया था। यहाँ बेड़ी ‘ का अर्थ बाहरी दुनिया और पाँच इंद्रियों के बंधन से है। आत्म-बोध प्राप्त किया हुआ व्यक्ति इन बंधनों से मुक्त है। फाटकों का खुलना वासना, इच्छा, लालच और आसक्ति पर नियंत्रण का प्रतीक है। चौकीदार का सो जाना इस बात का प्रतीक है कि मनुष्य आत्मबोध की स्थिति में संसार से पूरी तरह से मुक्त हो जाता है।
आंधी, बारिश और आग, यह सभी अनियंत्रित इच्छाओं और द्वेष की आंतरिक उथल-पुथल का प्रतिनिधित्व करते हैं। जिस क्षण कृष्ण के पैर अशांत पानी को स्पर्श कर लेते हैं, सब कुछ शांत हो जाता है। आध्यात्मिक व्याख्या यह है कि भीतर की ओर और एक शुद्ध चेतना की ओर मुड़ कर किसी भी मन की अशांत अवस्था को नियंत्रित किया जा सकता है। व्यक्ति की इच्छाओं और लगाव को नियंत्रित करना आसान है, लेकिन अहंकार/अहम् को नियंत्रित करना सबसे कठिन है। यह इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि कृष्ण के जन्म के समय, कंस जीवित था। अहंकार/अहम् (कंस) को मारने के लिए कृष्ण (आत्म-बोध की स्थिति ) को कई साल लग गए।
आत्म-बोध की स्थिति को प्राप्त कर जीवन का अंतिम उद्देश्य तो अहंकार/ अहम् को नष्ट करना होना चाहिए, जो कि कृष्ण ने आखिरकार किया।