भगवान गणेश को सिंदूर का चोला चढ़ाने का क्या है रहस्य?
हिन्दू धर्म शास्त्रों के मुताबिक, प्रथम पूज्य देवता श्री गणेश बुद्धि, श्री यानी सुख-समृद्धि और विद्या के दाता हैं। उनकी उपासना और स्वरूप मंगलकारी माने गए हैं। गणेश के इस नाम का शाब्दिक अर्थ – भयानक या भयंकर होता है। क्योंकि गणेश की शारीरिक रचना में मुख हाथी का तो धड़ पुरुष का है। सांसारिक दृष्टि से यह विकट स्वरूप ही माना जाता है। किंतु इसमें धर्म और व्यावहारिक जीवन से जुड़े गूढ़ संदेश है। आज हम आपको बताते हैं कि आखिर क्यों गजानन को सिंदूर चढ़ाते हैं?
भगवान श्रीगणेश जी की प्रतिमा पर सिंदूर का लेप करके चोला चढाना अति आवश्यक माना गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार- एक “सिन्धु” नामक असुर का वध श्रीगणेश जी ने किया और उसके शरीर से निकले सिंदूर का लेप श्रीगणेशजी ने क्रोधित अवस्था में अपने शरीर पर लगा लिया। यह “सिन्धु” अधर्म का पुत्र था और लोगों के घरों में घुसकर परिवार में अशांति, हानि और कलह उत्पन्न करता था।
श्रीगणेशजी के सिंदूर लिप्त स्वरूप से यह भयभीत होता है इसलिए मुख्य द्वार पर जो गणेशजी की प्रतिमा स्थापित की जाती है, वह ऎसे ही असुरों से और बुरी नजरों से घर की रक्षा करती है। मुख्य द्वार पर श्रीगणेशजी के दाएं-बाएं दोनों तरफ सिंदूर के धोल से “स्वास्तिक” और “रिद्धि-सिद्धि” व “शुभ-लाभ” लिखने की परंपराएं हैं। इस तरह के मांगलिक चिह्नों व नामों का अंकन घर में सुख-शांति का संचार करता है।
घर में रहने वाला हर सदस्य घर से बाहर निकलते समय और घर में प्रवेश करते समय मुख्य द्वार पर स्थित गणेशजी को प्रणाम अवश्य करता है और शुभ-लाभ का स्मरण करते हुए शुद्ध नैतिक व वांछित मार्गो से ही शुद्ध लाभ अर्जित करने का संकल्प लेकर निकलता है और यह मानसिक संकल्प जीवन में सच्चा सुख और ऎश्वर्य प्राप्त होने में सहायक है। सिंदूर मांगलिक पदार्थ है और बुरी आत्माओं व अदृश्य आसुरी शक्तियों से मनुष्य की अथवा घर की रक्षा करता है। इसकी तीव्र आभा से बुरी हवाओं का पलायन होता है और शुद्ध हवायें और तत्व मनुष्य के आसपास विद्यमान रहने लगते हैं।
क्या होता है सिंदूर?
सिन्दूर लाल रंग का होता है। रासायनिक दृष्टि से सिन्दूर अक्सर पारे या सीसे के रसायनों का बना होता है, इसलिए विषैला होता है और इसके प्रयोग में सावधानी बरतने को और इस पदार्थ को बच्चों से दूर रखने को कहा जाता है।