सदा भगवान शिव के सामने क्यूँ बैठे रहते हैं नंदी
मंदिर में हमेशा नंदी को शिव लिंग के सामने बैठा पाते हैं। लिंग प्रतीक है सर्वशक्तिमान सर्वोच्च शिव का और नंदी प्रतीक है जीव (आत्मा) का । जिस प्रकार शिव लिंग के सामने बैठे नंदी का सारा ध्यान अपने आराध्य की तरफ होता है उसी प्रकार व्यक्ति को सांसारिक गतिविधियों से दूर हो कर अपना सारा ध्यान केवल भगवान की ओर लगाना चाहिए। बैठे हुए नंदी स्थिरता का प्रतीक है, और उनके चार पैर सत्य,धर्म,शांति तथा प्रेम का प्रतिनिधित्व करते हैं ।
एक कथा के अनुसार समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को कंठ में रखने के बाद जब नीलकंठ ध्यान लगाने बैठे तो गले मे उत्पन्न हुई जलन की वजह से उन्हें ध्यान लगाने में परेशानी का अनुभव हो रहा था तो उन्होंने नंदी को सामने बैठ कर गले पर फूँक मारने के लिए कहा। कहा जाता है कि इसलिए नंदी सदा भोलेनाथ के सामने विराजमान रहते हैं।
शिवपंडी से निकलने वाले तेज का सामना करना सामान्य व्यक्ति के लिए संभव नही है। नंदी के सींगों से शिवतत्त्व की भौतिक-विध्वंसक तरंगों के उत्सर्जन के कारण, व्यक्ति के रज-तम गुण खंड-खंड हो जाते हैं और व्यक्ति की सात्त्विकता. बढ़ जाती है। फिर, शिवपिंडी से निकलने वाली शक्तिशाली तरंगों को अवशोषित करना संभव हो जाता है। शिवापिंडी को नंदी के सींगों के बीच से देखने की बजाय यदि. सीधे देखा जाता है, तो पिंडी के तेज से व्यक्ति, शरीर के तापमान में अचानक वृद्धि, सिर में सुन्नता, कम्पन्न आदि शारीरिक समस्याओं का सामना कर सकता है।अतः दर्शनार्थी को शिव लिंग और नंदी के बीच में नहीं खड़ा होना चाहिए।
बैठे हुए और हमेशा शिव को देखते हुए नंदी – इस अर्थ को भी व्यक्त करते हैं कि जीवन का उद्देश्य सृष्टि की एकात्मकता तथा प्राणियों की ईश्वरत्व के साथ अभिन्नता को महसूस करना है। व्यक्ति को अपनी इंद्रियों पर पूर्ण नियंत्रण रखना चाहिए। ईश्वर को कण-कण में देखें और ईश्वर की हर रचना से प्रेम करें। मानव जीवन का लक्ष्य ईश्वर-प्राप्ति तथा परमात्मा में विलीन होना है।
शिव लिंग के दर्शन के लिए व्यक्ति को. नंदी के दाहिनी ओर बैठना या खड़े होना चाहिए और नंदी के दोनों सींगों पर तर्जनी और दाहिने हाथ का अंगूठा रख उनके बीच (उंगली, अंगूठे और सींगों द्वारा निर्मित फ्रेम के माध्यम से) मे से शिवलिंग के दर्शन करने चाहिए।