आज के युवाओं के लिए प्रेरणादयक हैं श्रीकृष्ण
योगेश्वर भगवान् श्री कृष्ण भारतीय संस्कृति के एक अनोखे व् अद्भुत महानायक हैं। ईश्वर होने के बावजूद वे बेहद मानवीय प्रतीत होते हैं। सच्चे अर्थों में लोकनायक के रूप में वे किसी भी समस्या के उत्पन्न होने पर हमारे सामने एक आदर्श के रूप में विद्यमान होते हैं। इसलिए श्रीकृष्ण को मानवीय भावनाओं, इच्छाओं और कलाओं का प्रतीक माना जाता है। एक हाथ में बाँसुरी और दूसरे हाथ में सुदर्शन चक्र धारण किये हुए श्री कृष्ण का पूरा जीवन पुरुषार्थ की प्रेरणा देता है। आज के तकनीक के दौर में भी भगवान कृष्ण हमारे युवाओं के लिए एक महान शिक्षक और प्रेरणा के स्रोत हैं। । जब अर्जुन तीव्र चिंता, भ्रम, अनिर्णय और अवसाद की स्थिति में थे, तब कृष्ण ने अर्जुन को सही परामर्श दिया। कृष्ण के ज्ञान, कौशल और मानवीय संबंधों की समझ ने ही अर्जुन को समझाया कि उन्हें अपने कर्तव्य को निभाना है, चाहे उनके विपरीत कोई भी हो।
प्रथम सिद्धांत है सुनो, सुनो और सुनो। भगवद गीता के पहले अध्याय के अनुसार कृष्ण ने अर्जुन की बात सुनी और पूरी तरह धैर्यवान हो कर सुनी। आज के युवाओं के लिए आवश्यक है कि वे दूसरों को सुनना सीखें । गीता के 18 अध्यायों में से, एक पूरा अध्याय केवल अर्जुन की बात सुनने के लिए समर्पित है । श्री कृष्ण से प्रेरणा ले कर यदि आज का युवा दूसरों की बातों को, उनकी भावनाओं को सिर्फ सुने और इसलिए ना सुने की उसे जवाब देना है बल्कि कृष्ण की तरह धैर्यपूर्वक सिर्फ सुने तो इस से उसकी और दूसरों की भी आधी से ज्यादा समस्याएँ हल हो जाएँगी। चिंता, भ्रम, अनिर्णय और अवसाद की स्थिति थोड़े से प्रयासों से समाप्त हो जाएगी।
दूसरा सिद्धांत यह है कि दूसरों को सुनते समय गैर-आलोचनात्मक रहा जाए। अर्जुन को सुन ने के गंभीर क्षणों के दौरान कृष्ण में क्रोध के कोई लक्षण नहीं दिखते, कृष्ण मुस्कुराते रहे और सुनते रहे। आज के युवा को इसका अभ्यास करना चाहिए। आज के युवा ने क्रोध को अपना हथियार बना लिया है। दूसरों की बातों की , विचारों की बिना आलोचना किये, बिना क्रोध किये सुने। सिर्फ सुन ने के लिए या फिर जवाब देने के लिए न सुने बल्कि कृष्ण की तरह सामने वाले के विचारों को उसकी पीड़ा को समझने के लिए सुने।
तीसरा सिद्धांत यह है कि हर उत्तर का आधार तर्क होना चाहिए। गीता के 18 अध्यायों में कृष्ण और अर्जुन के बीच 700 प्रश्न और उत्तर हैं, कृष्ण ने अर्जुन के हर प्रश्न का उत्तर उचित तर्क के साथ दिया। यह सारे तर्क या तो अनुभवात्मक थे या फिर इन तर्कों का एक ठोस आधार था। कृष्ण ने कभी अर्जुन को आश्वस्त हुए बिना अपनी बातों पर विश्वास करने क लिए मज़बूर नहीं किया। आज क युग की आवश्यकता है की युवा तर्कसम्मत ज्ञान की तरफ कदम बढ़ाये।
चौथा सिद्धांत है आश्वासन का। कृष्ण ने अर्जुन को दो अवसरों पर आश्वासन दिया, पहला जब श्री कृष्ण ने कहा की “जब जब अधर्म या अन्याय होता है तब तब कोई आ कर उसे सही करेगा।” इसी तरह आज के युवकों को सामाजिक मुद्दों पर, समाज में फैली विभ्रान्तिओं को ठीक करने की पहल करनी चाहिए। उन्हें अपने बंधू- बांधवों और समाज को आश्वस्त करना चाहिए की उनके राहत समाज दिशाहीन नहीं होगा। अध्याय 18 श्लोक 65 में फिर से, कृष्ण कहते हैं कि जो भी व्यक्ति या समाज परिस्थितियों के प्रति जागरूक हो कर निर्णय लेता है एवं धर्मनिष्ठ हो कर चीज़ों की विवेचना करता है कोई कारण नहीं है कि वह खुश या स्वस्थ न हो। कृष्ण फिर से अर्जुन को आश्वस्त करते हैं कि वह सफल होंगे।
पांचवें सिद्धांत को गीता के अंतिम श्लोक (18.78) में बताया गया है, जो कि एक अच्छे शिक्षक- छात्र के संबंध के महत्व को संक्षेप में प्रस्तुत करता है, (यहाँ शिक्षक से तात्पर्य है की जो भी व्यक्ति आपको सही राह दिखाए वह शिक्षक है) जहाँ संजय धृतराष्ट्र से कहते हैं कि जब कृष्ण जैसे कल्याण करने वाले हों और अर्जुन जैसे रोगी हों तो कोई कारण नहीं की जीत उनकी नहीं होगी।
कृष्ण से प्रेरित हो कर आज के युवा को भी अपने समाज के लिए कल्याणकारी होना चाहिए।
श्री कृष्ण की लीलाएं सामाजिक संतुलन एवं राष्ट्रप्रेम का प्रेरक मानदंड हैं । श्रीकृष्ण एक ऐसे आदर्श चरित्र हैं जो रण क्षेत्र में अर्जुन की मानसिक वेदना का निदान करते समय एक मनोवैज्ञानिक, कंस जैसे पापी का संहार करते हुये एक धर्मावतार, स्वार्थ को पोषित करने वाली राजनीति का विरोध करते हुये एक आदर्श राजनीतिज्ञ, बाँसुरी बजाने वाले के रूप में संगीतज्ञ, बृजवासियों के सामने प्रेम का अवतार , सुदामा के सामने एक आदर्श दोस्त तो सुदर्शन चक्रधारी के रूप में एक योद्धा और सामाजिक क्रांति के प्रणेता हैं।
आज का युवा यदि श्री कृष्ण को अपना प्रेरणा स्रोत बना लें तो उन्हें जीवन के हर एक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने से कोई नहीं रोक पायेगा।