सावधान .! 13 दिनों (त्रयोदश ) का विश्वघस्र पक्ष
तिथियों के गणना के आधार पर विक्रम संवत 2078. में भाद्रपद का शुक्ल पक्ष ( 8 सितंबर से 20 सितंबर 2021) 15 दिन के स्थान पर सिर्फ 13 दिन का ही होगा। शुक्ल पक्ष के 13 दिन का होने के कारण शास्त्रों में इसे अशुभ व अनिष्टकारी फल देने वाला बताया गया है। सामान्य रूप से ज्योतिष में सूर्य तथा चंद्र की गति की गणना करने के बाद. प्रत्येक वर्ष में शुक्ल पक्ष के 14 ,15 या फिर 16 दिन बताए जाते हैं। किसी पक्ष में दिनों की संख्या अलग होने का कारण. उस पक्ष में किसी तिथि का क्षय या वृद्धि कारण बनता है। पक्ष में किसी तिथि के क्षय होने की स्थिति में 14 दिन रह जाते हैं एवं किसी तिथि में वृद्धि होने से अर्थात 24 घंटे से ज्यादा के समय में उस तिथि का बने रहना यानी कि जो तिथि एक वार में आरंभ हो रही है वह 24 घंटे बाद दूसरे वार में भी चलती रहे, तो तिथि का फैलाव होने के कारण 2 दिन बन जाते हैं और पक्ष में 16 दिन हो जाते हैं। और यदि किसी तिथि. का ना तो विलय हुआ हो और ना ही वृद्धि हुई हो तो पक्ष में 15 दिन ही रहते हैं। कई बार सूर्य तथा चंद्र की गति की गणना के कारण ऐसा भी हो सकता है कि एक ही पक्ष में अर्थात 15 दिन की अवधि में दो बार तिथि का विलय हो जाए जिससे वह पक्ष 13 दिनों का हो जाता है ऐसे पक्ष को “विश्वघस्र पक्ष” भी कहा जाता है। विश्वघस्र पक्ष के अशुभ फल का वर्णन महाभारत काल. में भी देखने को. मिलता है। बहुत सारे शास्त्रों ने भी 13 दिन की अवधि वाले पक्ष के अशुभ फलों का वर्णन किया है।
“अनेकयुग साहस्त्रयाद् दैवयोगात् प्रजायते।
त्रयोदशदिने पक्ष: तदा संहरते जगत्।।”( मेघ महोदय )
अर्थात जिस काल में 13 दिन का पक्ष होता है उस काल में आम लोगों का जीवन त्रस्त हो जाता है। आमजन को इस 13 दिवसीय विश्वघस्र पक्ष में अनेकानेक गंभीर रोग, महंगाई, हिंसा, पीड़ा का सामना करना पड़ सकता है। यह पक्ष विश्व स्तर पर भौगोलिक स्थिति में परिवर्तन भी कर सकता है, अर्थात इस पक्ष का अशुभ फल किसी देश के विघटन के रूप में हमें देखने को मिल सकता है। समाज में हर तरफ अशांति हो सकती है। कई अन्य शास्त्रों में भी त्रयोदश पक्ष के अशुभ फलों का विवरण मिलता है।
यदा च जायते पक्षस्त्रयोदश दिनात्मकः।
भवेल्लोक क्षयो-घोरो रुण्डमुण्डमालायुता मही। .”
“त्रयोदशदिन: पक्षो भवेद् वर्षाष्टकान्तरे।
तदा नगरभंग: स्यात् छत्रभंगो महर्घता ।।”
विश्वघस्र पक्ष या त्रयोदश दिनात्मक. पक्ष का अशुभ प्रभाव भारत की राजनैतिक, आर्थिक व सामाजिक स्थिति पर भी पड़ सकता है। यह समय भारत में हो सकने वाली अस्थिरता और अशांति की ओर इंगित करता है। भारत के राजनीतिक पटल पर विभिन्न पार्टियों के बीच बिखराव व तनाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। विशेषकर उत्तर भारत तथा मध्य भारत के बहुत से राज्यों में तोड़फोड़, हिंसा, आगजनी इत्यादि जैसी घटनाएं घटित हो सकती हैं। त्रयोदश दिनात्मक पक्ष भूकंप, भुखमरी, अकाल, भूस्खलन जैसे प्राकृतिक प्रकोप का भी योग बनाता है। परिणाम स्वरूप आमजन के उपयोग की वस्तुएं महंगी हो जाएंगी। इस पक्ष क परिणाम प्रकृति, देश एवम् व्यक्तिगत रूप से भी पड़ता है ।
यह समय किसी ऐसे व्यक्ति के असमय निधन को भी दर्शाता है जो राष्ट्र के लिए महत्वपूर्ण हो। शास्त्रानुसार 13 दिन के इस पक्ष में विवाह, सगाई जैसे मंगल कार्यों को ना करने का सुझाव दिया जाता है। गृह प्रवेश तथा भवन निर्माण सम्बंधित कार्यों को भी ना ही करना उचित है । मुंडन, उपनयन संस्कार जैसे मांगलिक कार्यों को करना भी निषेध माना गया है।
“उपनयन परिणयनं वेश्मारम्भादि कर्माणि ।
यात्रां द्विक्षयपक्षे कुर्यात् न जिजीविषु पुरुष:।।”
शास्त्रों में बताये गए इन नियमों को ध्यान में रखते हुए कुछ शास्त्रविज्ञ त्रयोदश पक्ष में शुभ व् मंगल कार्यों को ना करने की सलाह देते हैं, किन्तु मुहूर्त्त चिंतामणि में कश्यप मुनि के अनुसार विशेष गृह स्थिति अर्थात. यदि केंद्र/ त्रिकोण में ग्रहों की शुभ स्थिति हो तो इस विश्वघस्र पक्ष का दोष समाप्त हो जाता है।
“ अब्दायनर्तुमासोत्थाः पक्षतिथ्यृक्ष – सम्भवाः।
ते सर्वे नाशमायन्ति केंद्रसंस्थे शुभ ग्रहे ।।”